09 फ़रवरी 2008

अठारह

आज मैं अठारह साल का हो गया. यानि, अब कानून के अनुसार भी बच्चा नहीं रहा.

अभी भी जवान तो हूं पर.. कहीं ना कहीं मेरा बचपान छूट गया, बीते समय की धुंध में. चाहूं तो भी नहीं लौट सकता. समय अपनी क्रूर रफ्तार पर आगे बहता चलता है. हां, वह दुख भरे पल भी बीत ही जाते हैं, खो जाते हैं हमारे मन के भूले हुए किनारों में. पर उनके साथ साथ वह सुख के यादगार पल, हँसाते हँसाते रो पड़ाने वाले पल, दोस्तों के साथ पेड़ पर चड़के मिलनी वाली मासूम सी खुशी से भरे सरल से ज्यादा गहरे पल, सब समय की बेरहम लहरों में बह जाते हैं, चाहे जितनी भी कोशिश की हो उनको थामकर अपने पास रखने की. यादें बन जाती है धूल इकट्ठी करने वाली भावनाएं, जिनकी ओर कभी कभी हमारी आंखे पड़ती हैं, बहुत ही आगे बढ़कर, जब तक कि वह भावनाएं मन के कैद में नजाने कब से बंद पड़ी रह चुकी होती हैं. निकालने की कोशिश करने पर भी, उन पुरानी यादों के लिए अब की इस नई दुनिया में कहीं भी जगह नहीं होती. और फिर हमको अपने ही हाथों से अपनी प्यारी यादों को वापस अपने मन के कैद में लौटाना पड़ता है.

कहते हैं कि जन्मदिन एक खुशी मनाने का बहाना होता है. तो चलो, बहाना अपनाकर खुशियां मनाते है. और शायद मैं अभी इन सब ख्यालों के लिए बहुत ही ज्यादा जवान हूं. सिर्फ 18 साल का ही तो हूं. पुरी जिंदगी पड़ी है आगे. क्यों अभी से उम्मीद तोड़ दूं.

तो शुरू करता हूं मैं आज अपनी लड़ाई. आज तक की यादों को समय की बेरहमी से बचाने की लड़ाई. बचपन खोने के दिन, बचपना सम्हालकर रखने की लड़ाई.

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

aevynn
कैलिफोर्निया का एक विश्वविद्यालयी छात्र