27 सितंबर 2007

नई शुरुआतें

... नए लोग, नई जगह ... विश्वविद्यालय आकर मुझे थोड़ा अकेलापन महसूस होने लगा है । उच्चविद्यालय के कुछ दोस्त तो है पर फिर भी, उनसे भी थोड़ा अलगाव महसूस होने लगा है । और मुझे नए दोस्त बनाने आते नहीं । मेरे दो कमरा साथियों में से एक सो दोस्ती हो गई है पर .. फिर भी .. बीच बीच में मुझे लगता है कि काश मैं वापस उच्चविद्यालय जी सकता ।

शायद थोड़ी देर में और अच्छे दोस्त बन जाए । सभी का कहना है कि विश्वविद्यालय ही ज़िंदगी का सबसे मज़ेदार समय होता है ।

14 सितंबर 2007

पुनर्जन्म

मैंने काफ़ी समय से यहां कुछ लिखा नहीं ... 
विद्यालय के काम से व्यस्त होकर यहां लिखने के बारे में बिलकुल भूल ही गया था । छुट्टियों के शुरू होने तक अादत ही छुट गई थी । और अब विश्वविद्यालय शुरू होने का समय अाया तो अचानक मुझे यहां लिखने याद अाता है .. यह दिमाग भी ..

अब लिखना शुरू किया है तो लिखने का कोई विषय भी होना चाहिए । क्या तो लिखूं लेकिन .. 

विश्वविद्यालय जाने के बारे में लिखूं क्या .. यह शायद मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा परिवर्तन है । घर से बाहर जाकर रहना, मां-बाप से दूर .. कुछ ही महीनों में मैं कानून के अनुसार वयस्क हो जाऊंगा .. मुझे यह बातें सोचकर अजीब लगने लगा है । अभी भी मुझे वयस्क जैसा महसूस नहीं होता । 17 साल का हूं और शायद यह ही मेरे लिए अादर्ष उम्र है । ना ही बच्चा ना ही बालिग .. दोनों के बीच में फसा हुअा जवान .. वैसे .. सोचकर तो मुझे ऐसा भी नहीं लगता कि 18 साल के होना के बाद मुझमें कुछ बदल जाएगा । बस .. कानूनी वयस्क माने जाना .. 
उम्र की बहुत बात हो गई । 

विश्वविद्यालय जाने का सबसे बड़ा बदलाव - दोस्तों को छोड़ना । सच बोलूं तो मेरे ज़्यादा करीबी दोस्त तो मेरे साथ ही जा रहे हैं पर .. एक दोस्त है जो हमसे अलग हो गया है । मेरा शायद सबसे जिगरी दोस्त । उसका विश्वविद्यालय हमारे से पहले शुरू हो गया तो वह अब भी वहां ही है । थोड़ा तो लगता है कि अलग होने के बावजूद भी हम मिलते तो रहेंगे ही पर फिर भी .. उसके ना होने से थोड़ा तो मुझे बुरा लग ही रहा है । चलो .. देखते है .. कैसा चलता है । उसका विश्वविद्यालय इतना दूर तो हैं नहीं कि मिलना भी मुश्किल हो ..

और अाखरी चीज़ । मुझे विश्वविद्यालय में दोस्त ना बना पाने का डर है .. मैं अपने अाप को बार बार बताता रहता हूं कि बिना दोस्तों का तो कोई भी नहीं होता और मेरे तो कुछ उच्चविद्यालय के भी दोस्त मेरे साथ हैं । फिर भी .. 
आखिरकार, दिल के भावों को दिमागी तर्क से थोड़े ही सुलझाया जा सकता है ।

चलो, फिर कभी ।

मेरे बारे में

aevynn
कैलिफोर्निया का एक विश्वविद्यालयी छात्र