04 सितंबर 2006

अलगाव

मुझे काफ़ी समय से एक बात बहुत परेशान कर रही है । विश्वविद्यालय जब जाना पड़ेगा, तो मुझे अपने सारे दोस्तों से जुदाई सहन नहीं होगी । जीवन में मैंने इतने अच्छे दोस्त कभी नहीं बनाए जितने मैंने यहां उच्चविद्यालय में बनाए । और इस साल जब इन सब से अलग होने का समय आएगा... मैं सच में नहीं सहन कर पाऊंगा । मुझसे आसानी से दोस्त बनते तो हैं नहीं... विश्वविद्यालय जाकर मैं बिलकुल अकेला रह जाऊंगा अगर कोई दोस्त मेरे साथ न आए ।
मेरी एक बहुत करीबी दोस्त है, जिसका नाम मैं अज्ञात रखना चाहूंगा, जो मेरे जैसा सोचती है । उससे भी जुदाई सहन नहीं हो पाएगी । पर उसका जो प्रेमी है, जो मेरा भी दोस्त है, वह कहता है कि वह बिना दुबारा सोचे ही किसी ख्यात विश्वविद्यालय जाने को तैयार है, चाहे हम सब उसके दोस्त उसके साथ जाए या न जाए । कहता है कि वह लोगों के साथ ज़्यादा करीब नहीं होता है और कि वह स्वार्थी और खुदगरज है । बाकी दोस्तों से भी बात करनी चाहिए... काश कि ऐसा सोचने वाला सिर्फ वह अकेला हो ।

दूसरी बात, जो भविष्य से ज़्यादा अतीत से जुड़ी हुई है... मुझे यह स्वार्थ की बात बड़ी अजीब लगी ।
था एक समय जब मुझे एक लड़की पसंद थी । बहुत पसंद थी । पर तब इस लड़के को भी वह पसंद थी । और मेरे भाग्य में असफलता ही लिखी थी, क्योंकि उस लड़की को लड़के पसंद आने लगा ।
इतना दुःख हुआ था मुझे । और अब वह कहता है कि वह लोगों के करीब नहीं होता है ।
हां, मैं जलता हूं । मैं वैसे ज़्यादा जलने वाला हूं नहीं । पर फ़िर भी जलता हूं, उसके सौभाग्य से... कि वह लोगों के करीब आए बिना ही ऐसे संबंध जोड़ पाता है । कि उसके स्वार्थी होते हुए भी वह ऐसे संबंध लड़कियों के साथ जारी रख सकता है । फ़िर से मुझमें वही प्रश्न उठता है ः क्या नैतिक होना ही अच्छा है ?
चलो, छोड़ो इन बीते पल की बातें ।

हो सके तो, जो कोई भी उपर से मेरे मन के विचार सुन रहे हैं, वे इस कल आने वाली घटना का कुछ हल निकालें ।
मैं सच में अलगाव सहन नहीं कर पाऊंगा ।

1 टिप्पणी:

Pratik Pandey ने कहा…

हिन्दी ब्लॉग जगत् में आपका हार्दिक स्वागत् है। आशा है कि आप नियमित लेखन करते रहेंगे।

मेरे बारे में

aevynn
कैलिफोर्निया का एक विश्वविद्यालयी छात्र